चित्रकूट धाम जहां कंण – कंण में बसते हैं राम....

 

चित्रकूट धाम जहां कंण – कंण में बसते हैं राम....


पाठकों नमस्कार । ईनसाइट स्टेटमेंट का पिछला लेख जो की रामेश्वरम धाम से संबन्धित था, को आप सब ने पसंद किया एवं बहुत सराहा । इस प्रोत्साहन के लिए आप सब का हृदय से आभार । मैं आप लोगों को  अभी केवल उन्ही पर्यटक अथवा तीर्थ स्थलों से अवगत कराने का प्रयास कर रहा हूँ जहां मैंने  स्वयं जाकर वहां के महत्व को जाना है।  

मित्रों इस बार बारी है भारत के एक प्राचीन तीर्थस्थल की जिसका नाम है चित्रकूट धाम । चित्रकूट धाम उत्तरप्रदेश में मन्दाकिनी नदी के किनारे एवं विंध्याचल पर्वत श्रंखलाओं के उत्तर में स्थित एक पवित्र तीर्थ स्थल है । रामायण  के अनुसार अपने चौदह वर्ष के वनवास काल में ग्यारह वर्षों तक यह भगवान राम, उनकी पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण का निवास स्थान था। यही वह जगह है, जहां श्री राम जी ,  ऋषि अत्री और सती अनसूया के संपर्क में आए थे। असंख्य मंदिरों और तीर्थों के साथ प्रकृति शांति व सुंदरता में लिपटा हुआ यह क्षेत्र अत्यंत मनमोहक है। 

चित्रकूट एक प्राकृतिक स्थान है जो प्राकृतिक दृश्यों के साथ साथ अपने आध्यात्मिक महत्त्व के लिए भी प्रसिद्ध है। एक पर्यटक यहाँ के खूबसूरत झरने, चंचल  हिरण, बंदरों एवं लंगूरों के झुंड और नाचते मोरों को देखकर रोमांचित होता है, तो एक तीर्थयात्री मन्दाकिनी में डुबकी लगाकर और कामदगिरी की धूल को माथे पर लगाकर अभिभूत हो जाता है।

तो आइये चलते हैं और जानते हैं की वे कौन से प्रमुख स्थान हैं जो चित्रकूट को एक पवित्र तीर्थ स्थली बनाते है – 

कामदगिरी

कामदगिरी चित्रकूट धाम का मुख्य पवित्र स्थान है। संस्कृत शब्द ‘कामदगिरी’ का अर्थ ऐसा पर्वत है, जो सभी इच्छाओं और कामनाओं को पूरा करता है। माना जाता है कि यह स्थान अपने वनवास काल के दौरान भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी का निवास स्थल रहा है। उनके नामों में से एक भगवान कामतानाथ, न केवल कामदगिरी पर्वत के बल्कि पूरे चित्रकूट के प्रमुख देवता हैं। धार्मिक मान्यता है कि यहाँ के  सभी पवित्र  तीर्थ इस परिक्रमा स्थल में स्थित हैं। इस पहाड़ी के चारों ओर का परिक्रमा पथ लगभग 5 किमी लंबा है जिसमें बड़ी संख्या में मंदिर हैं। ग्रीष्म ऋतु के अलावा, पूरे वर्ष इस पहाड़ी का रंग हरा रहता है और चित्रकूट में किसी भी स्थान से देखे जाने पर धनुषाकार दिखाई देता है।


गुप्त गोदावरी


मित्रों यह वह जगह है जहां मैं सबसे ज्यादा रोमांचित हुआ । प्राचीन चट्टानों से घिरा हुआ संकरा सा लंबा मार्ग और उसमें  बहती हुई एक छोटी सी नदी, इस नदी का स्रोत अथाह था।  जब मैं उस गुफा में अंदर चला तो घुटने से थोड़ा उपर तक ठंडा पानी और उसमें तैरती मछलियाँ थी, मन में जिज्ञासा और आनंद के भाव थे । यह संकरा मार्ग आगे से कुछ घूमकर राम दरबार में खुलता है ।  गुफा में दो प्राकृतिक सिंहासन रुपी चट्टानें हैं, मान्यता है कि भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण ने यहां दरबार लगाया था।

हनुमान धारा 

यह स्थल राम घाट से 4 किलोमीटर दुर है | कहा जाता है की जब हनुमानजी ने लंका में अपनी पूँछ से आग लगाई थी तब उनकी पूँछ पर भी बहूत जलन हो रही थी | रामराज्य में भगवान श्री राम से हनुमानजी  ने विनती की जिससे अपनी जली हुई पूँछ का इलाज हो सके | तब श्री राम ने अपने बाण के प्रहार से इसी जगह पर एक पवित्र धारा बनाई जो हनुमान धारा के नाम से प्रसिद्ध है |

यह स्थान पर्वतमाला के मध्यभाग में स्थित है। पहाड़ के सहारे हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है। मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है। इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है। इसीलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं। यहां 12 महीनें भक्तों का आना जाना लगता रहता है। 

सती अनुसुईया मंदिर 

अत्री मुनि, उनकी पत्नी अनुसुईया और उनके तीन बेटों ने यहाँ ध्यान एवं तप किया। अनुसुईया के नाम पर एक आश्रम यहां स्थित है। यह माना जाता है कि मंदाकिनी नदी, सती अनुसूया के ध्यान के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई है। यही मन्दाकिनी नदी का उद्गम स्थल भी है । 

स्फटिक शीला

कहा जाता है कि इसी स्फटिक शिला पर प्रभु श्री राम एवं माता सीता विश्राम किया करते थे। माता सीता ने प्रभु श्री राम के साथ ज्यादातर समय इसी शिला पर व्यतीत किया है। इस शिला पर माता सीता के चरण चिन्ह अभी भी दर्शन के लिए मिल जाते हैं। प्रभु श्री राम ने इसी शिला पर बैठकर तिनके से धनुष बाण बनाया था, उसके चिन्ह भी दिखाई देते हैं। देवताओं के राजा इंद्र का पुत्र जयंत जो कौवे के रूप में यहां आया था, उसकी चौंच का चिन्ह भी यहां बताया जाता है। 

जानकी कुंड 

जानकी कुंड का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है।  यहां पर जानकी माता के प्राचीन चरण देखने के लिए मिलते हैं, जो एक चट्टान पर उभरे हुए हैं। यहां पर मंदाकिनी नदी का सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलता है। मंदाकिनी नदी  पर यहां पर कुंड बने हुए हैं, जहां पर सीता माता स्नान किया करती थीं ।  इसलिए इस जगह को जानकीकुंड कहा जाता है। 

भरत कूप

मुक्ति प्राप्त करने के लिए, चित्रकूट की तीर्थयात्रा इस पवित्र पूजा स्थल की यात्रा के बिना अधूरी है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम को अयोध्या के राजा के रूप में अभिषेक करने के लिए, उनके भाई भरत ने सभी पवित्र तीर्थों के जल को एकत्रित किया। ऋषि अत्री की सलाह पर, यह पवित्र जल बाद में इस कुँए में डाल दिया गया जिसे भरत कूप के नाम से जाना जाने लगा ।  

राजापुर

चित्रकूट धाम रेलवे स्टेशन से 38 किमी दूर है। गोस्वामी तुलसीदास का जन्मस्थान, जिन्होंने विश्व प्रसिद्ध श्री रामचरित मानस की रचना की थी। चित्रकूट से 42 किमी दूर, यह स्थान गोस्वामी तुलसीदास का जन्मस्थान माना जाता है। एक तुलसी मंदिर यहां स्थित है।

गणेशबाग

रेलवे स्टेशन से लगभग 5 किमी दूर बांके सिद्धपुर गांव के निकट कर्वी-देवंगाना रोड पर, गणेशबाग स्थित है, जहां एक बड़ा नक्काशीदार मंदिर, सात मंजिला बावली और एक आवासीय महल के अवशेष अभी भी मौजूद हैं। परिसर को पेशवा विनायक राव ने गर्मियों के प्रवास के लिए बनावाया था। इसे मिनी-खजुराहो के रूप में भी जाना जाता है।


प्रतिदिन मन्दाकिनी नदी स्थित रामघाट पर संध्या आरती होती है, यह आरती बड़ी ही मनमोहक एवं सम्मोहित करने वाली होती है, और यदि आप एक नाव में बैठकर जैसा की मैंने किया था आरती का आनंद लें तब तो सोने पे सुहागा ही हो जाएगा । मित्रों आप  विश्वास कीजिये मन्दाकिनी नदी की लहरों पर नाव में बैठे-बैठे आरती का यह आनंद आप जीवन भर भुला नहीं पाएंगे । यदि आप इस आरती में सम्मिलित नहीं हुए तो मानो आपने चित्रकूट में कुछ बहुत विशेष छोड़ दिया । संध्या आरती के बाद – उत्तर प्रदेश पर्यटन द्वारा द्वारा मन्दाकिनी नदी पर लेज़र शो और 30 मिनट की भगवान राम पर आधारित एक फिल्म दिखाई जाती है। जो यहाँ पँहुचे तीर्थयात्रियों के अनुभव को और भी सुंदर बनाती है।

मित्रों यदि आप वीकेंड में कम समय और कम बजट में कोई पर्यटक स्थल घूमना चाहें जो धार्मिक दृष्टि से भी उत्तम हो तो यह जगह आपके लिए उचित है ।


चित्रकूट घूमने जाने का उचित समय – 

प्राय यहाँ भी गर्मियों मे तापमान ज्यादा रहता है अतः बारिश के मौसम में अथवा अक्टूबर से लेकर फरवरी तक का मौसम यहाँ घूमने की दृष्टि से अच्छा रहता है ।   


कैसे पहुंचें:-

 

रेल मार्ग द्वारा – 

चित्रकूट के मुख्य मुख्य रेलवे स्टेशन का नाम कर्वी है, यह रेलवे स्टेशन देश के सभी प्रसिद्ध शहरों से जुड़ा हुआ है।

 सड़क मार्ग द्वारा – 

चित्रकूट जिला राष्ट्रीय राजमार्ग और अन्य सड़क मार्ग सहित सभी प्रसिद्ध शहरों से जुड़ा हुआ है।

 वायु मार्ग द्वारा - 

यहाँ से सबसे नजदीक का हवाई अड्डा प्रयागराज में स्थित है जिसकी दूरी करीब 106 किलोमीटर है । एक अन्य विकल्प  खजुराहो हवाई अड्डा है जो चित्रकूट से 167.7 किमी दूर है। दोनों हवाई अड्डों से दिल्ली के लिए दैनिक उड़ान सेवाएं हैं। 


पाठकों मेरे पिछले लेखों के लिए आपके द्वारा मिले अपार प्रेम के लिए आप सभी का आभार । मेरा प्रयास रहेगा की इसी प्रकार आप के लिए नए लेखों का सृजन करता रहूँ ।
आप इस लेख को https://www.facebook.com/wowindiatourism/ पर भी पढ़ सकते हैं ।


    संतोष चौबे


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