मेरा भारत महान अंक 1....
प्रिय पाठकों अवश्य ही हमारा भारत आज विश्व गुरु होता यदि हमारे राष्ट्र के कुछ राजनीतिक पूर्वजों नें राष्ट्र अहित में निर्णय नहीं लिए होते। यह हमारे भारत का दुर्भाग्य है कि प्राचीन ऋषिओं, मुनियों द्वारा दिया गया जीवन का गूढ़तम ज्ञान और विभिन्न अविष्कार जो वैज्ञानिकता की कसौटी पर पहले ही कसा हुआ था, को पाश्चात्य वैज्ञानिक जगत दबे मन से स्वीकार तो करता था किंतु विश्व पटल पर सदैव नकारता रहा।
एक से बढ़कर एक शूरवीर इस राष्ट्र की धरा ने पैदा किये किन्तु फिर भी आज हमारा राष्ट्र विश्व महाशक्ति नहीं है, जानते हैं क्यों । क्योंकि वो आक्रांता नहीं थे, यदि हिंसात्मक मार्ग चुना तो केवल अपनी राष्ट्र भूमि को बचाने के लिए। वीर और महान वो नहीं थे जिन्होंने समय समय पर अपनी विस्तारपरक नीतियों के लिए एक शांति प्रिय राष्ट्र की धरा को रक्तरंजित कर दिया, बल्कि वो थे जिन्होनें अपनी राष्ट्र भूमि, देश का गौरव, बहन बेटियों की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए। यदि देश के शूरवीरों का वर्णन किया जाय तो लाखों पृष्ठों की पुस्तक भी छोटी पड जाए । इन वीरों का इतिहास स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाना चाहिए था लेकिन इसे पाठ्यक्रम से ही हटा दिया गया।
केवल सत्ता की लोलुपता ने इस देश को एक अंधकारमय गर्त में ढकेल दिया, चाहे वह प्राचीन भारत के कुछ राजा रहे हों अथवा आजाद भारत के राजनेता । राष्ट्र उनके लिए कुछ नहीं था, यदि था तो केवल उनका व्यक्तिगत स्वार्थ और परिवारवादिता। मैं और केवल मेरा का सिद्धांत।
वर्तमान में हमारा राष्ट्र नित नए लक्ष्यों की ओर बढ़ रहा है। मैं यह देख रहा हूँ कि मध्यकालीन इतिहास की कुरीतियों और जातिबंधन को छोड़कर आज हम सब भारतवासी एक साथ आगे बढ़ रहे हैं । मैं नहीं देखता की किसी रेलवे या हवाई टिकट काउंटर पर जाति या धर्म पूछकर टिकट दिया जाता हो, शिक्षा के मंदिरों में जाति के आधार पर शिक्षा दी जाती हो, हमारे कार्यालयों और स्कूलों में सभी धर्म के लोग मिलकर कार्य और अध्ययन करते हैं, राष्ट्र के गरिमामयी पदों पर विभिन्न धर्म और जाति के लोग राष्ट्र का गौरव बढा रहे हैं तो फिर हमारे समाज के ही कुछ संकीर्ण विचारधारा के व्यक्ति क्यों समाज के कुछ वर्गों को धर्म और जाति के नाम पर बरगला रहे हैं, तथा अपनी राजनीतिक अस्मिता केवल जाति और धर्म के नाम पर बचाने की कोशिश में हैं ।
आज राष्ट्र में सभी क्षेत्रों में सारे वर्गों के लिए भेदभाव से परे हटकर समान अवसर हैं । इतने बडे राष्ट्र में यदि कहीं ऐसा कुछ है कि जाति के नाम पर भेदभाव किया जा रहा है तो उसके लिए प्रशाशन है, न्यायपालिका है जो अपना कार्य करेगा और ऐसे तत्वों को दंडित किया जाएगा । कुछ शरारती तत्व प्राचीन ग्रंथों का हवाला देते हुए हमारे समाज के भोले भाले कम पढ़े लिखे लोगों का दिमाग शोधन कर रहे हैं जो सर्वथा गलत है । वे लोग केवल शाब्दिक अर्थों का मतलब निकालते हैं और भाव को नहीं पढ़ते। नीच कोई जाति नहीं है बल्कि वह है जो देश, समाज और आम जनमानस के विरुद्ध अहितकर और निकृष्ठ कार्य करता है । अरे भाई इन्हें प्रतिस्पर्धी बनाइये, मेहनत करना सिखाइये, अपनी कार्यक्षमता को सिद्ध करना सिखाइये इन्हें किसी बैसाखी का दुःस्वप्न मत दिखाइए। इन्हें बताइये की अवसर सभी के लिए समान हैं बस आगे आइये अपनी कार्यक्षमता के अनुरूप पुरुषार्थ कीजिये और राष्ट्रहित में भागीदार बनिये ।
पाठकों ऐसे लोगों को यह जान लेना चाहिए कि अब उनकी दाल नहीं गलेगी, समाज और राष्ट्र को तोड़ने वालों के लिए यहां कोई जगह नहीं है । यह कार्य आपका, हमारा और सभी देशवासियों का है जिसे हम अवश्य निभाएंगे।
हमारा भारत महान था, है और सदैव रहेगा..
Comments
Post a Comment