रामेश्वरम धाम सुदूर दक्षिण की वह जगह जहां असीम शांति का अनुभव होता है ....

 

रामेश्वरम धाम, सुदूर दक्षिण की वह जगह जहां असीम शांति का अनुभव होता है ....



सुदूर भारत की एक जगह जो रामेश्वरम के नाम से प्रसिद्ध है भारत के तमिलनाडू राज्य में स्थित है यह  एक द्वीप है जिसे पांबन द्वीप भी कहा जाता है। यह द्वीप भारत की मुख्य भूमि से अलग है एवं पांबन सेतु के द्वारा भारत की मुख्य भूमि से जुड़ा है।  सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह तीर्थ चार धामों में से एक है जहाँ प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं । यहाँ की  शांति व आध्यात्मिकता का माहौल आपको मंत्रमुग्ध कर देगा।

रामेश्वरम वर्ष में कभी भी आया जा सकता है, पर सबसे उचित समय है अक्टूबर से अप्रैल के दौरान। भारत के उत्तर में जो काशी की मान्यता है वही दक्षिण में इस तीर्थ स्थल की है ।

महर्षि वाल्मीकि रामायण के अनुसार इस मंदिर के शिवलिंग का निर्माण उस समय हुआ जब श्रीराम लंका के राजा रावण से युद्ध की तैयारी कर रहे थे। युद्ध से पूर्व श्रीराम जी ने उनके आराध्य, भगवान शंकर की उपासना के लिए वहाँ समुद्र के किनारे रेत से शिवलिंग का निर्माण किया । श्रीराम जी द्वारा की गयी   उपासना एवं पूजा अर्चना से प्रसन्न हो कर शिवजी ने उन्हे युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद प्रदान किया । जब श्रीराम जी ने उनसे यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने की प्रार्थना की तो शिवजी ने इसे स्वीकार कर लिया, तभी से रामेश्वरम में यह रामनाथस्वामी ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित है । मंदिर के गर्भगृह में दो शिव लिंग हैं, एक श्रीराम जी  द्वारा रेत से निर्मित जिन्हें कि मुख्य शिवलिंग माना जाता है और इन्हें रामलिंगम नाम दिया गया, जबकि दूसरा शिवलिंग हनुमान जी द्वारा कैलाश पर्वत से लाया गया, जिसे विश्वलिंगम के नाम से जाना जाता है। भगवान राम के आदेशानुसार हनुमान जी  द्वारा लाए गए शिवलिंग अर्थात् विश्वलिंगम की पूजा आज भी सबसे पहले की जाती है। 

  


   

रामेश्वरम मंदिर अपने गलियारों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है । इस मंदिर में लगभग 22 कुएं है जिन्हें तीर्थ सन्नानम कहा जाता है । मुख्य शिवलिंग के दर्शन से पहले इन सभी 22 कुओं के पवित्र जल से स्नान करना आवश्यक होता है, जिसकी शुरुआत अग्नितीर्थम से की जाती है ।       अग्नितीर्थम समुद्र का वह वह स्नान घाट है जो मुख्य मंदिर से केवल कुछ कदमों की दूरी पर ही है ।           

पाठकों इन 22 कुओं के पवित्र जल से स्नान करने का एक अपना ही आध्यात्मिक आनंद है जिसे यहाँ पढ़कर नहीं अपितु वहाँ जा कर ही प्राप्त किया जा सकता है । मैंने प्रथम बार सन 2012 में अपने परिवार सहित वहाँ की यात्रा की थी । मंदिर के ही एक पुजारी ने मंदिर प्रांगड़ में स्थित इन 22 कुओं से स्नान करने में हमारी सहायता की ।    पुजारी जी आगे-आगे चलते एवं हम पीछे-पीछे, क्रम से हर एक कुएं पर पहुँच कर पुजारी जी बाल्टी डालकर कुएं से जल निकालते एवं हमारे ऊपर गिरा देते । यह क्रम तब तक चलता रहा जब तक सभी 22 कुओं से स्नान नहीं हो गया । इस पूरे क्रम में करीब एक घंटे का समय लगा तत्पश्चात हम सभी ने मुख्य शिवलिंग के दर्शन किए ।       यहाँ प्राप्त हुई अनुभूतियाँ अविस्मरणीय हैं, और इन्ही अनुभूतियों ने  मुझे यहाँ दुबारा जाने पर विवश कर दिया । 

वैसे तो पूरे रामेश्वरम में जगह-जगह रामायण कालीन स्थल मिलेंगे जो श्रीराम जी की कहानी से संबंध रखते हैं जैसे किसी जगह पर राम जी ने सीता जी की प्यास बुझाने के लिए धनुष की नोंक से कुआं खोदा था, तो कहीं पर उन्होंने सेनानायकों से सलाह की थी, कहीं पर सीताजी ने अग्नि-प्रवेश किया था तो किसी अन्य स्थान पर श्रीराम ने जटाओं से मुक्ति पायी, यहां राम-सेतु के निर्माण में लगे ऐसे पत्थर भी मिलते हैं, जो पानी पर तैरते हैं। मान्यता अनुसार नल-नील नामक दो वानरों ने उनको मिले वरदान के कारण जिस पाषाण अथवा शिला को छूआ, वो पानी पर तैरने लगे और सेतु बनाने के काम आए ।

किन्तु इन सभी स्थलों में मेरे हृदय को जिस स्थान ने आनंद की अनुभूति से भर दिया वह था कोदंडराम मंदिर जिसे विभीषण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है ।       यह मंदिर रामेश्वरम् के टापू के दक्षिण भाग में, समुद्र के किनारे स्थित है। यह मंदिर मुख्य रामेश्वरम  मंदिर से करीब 8 किलोमीटर दूर है। रावण-वध के बाद राम जी  ने इसी स्थान पर विभीषण का राजतिलक किया  था।

यह स्थल बड़ा ही रहस्यमय जान पड़ता है मंदिर के सामने जहां तक नज़र जाय वहाँ तक समुद्र की सफ़ेद रेती दिखलाई पड़ती है ।  एक सन्नाटा सा पसरा हुआ जान पड़ता है और यहाँ आ कर मुझे जो असीम शांति का अनुभव हुआ वह मैं वर्णन नहीं कर सकता ।     विश्वास मानिए यहाँ आ कर आपका हृदय आपसे कहेगा की अवश्य ही इस जगह में कुछ तो है ।      

रामेश्वरम में अनेकों तीर्थ स्थल हैं जिनहे आपको अवश्य घूमना चाहिए जिनमें प्रमुख रूप से विल्लीरणि तीर्थ, एकांत राम, सीता कुण्ड, आदि-सेतु, राम झरोखा गंधमादन पर्वत, जटा तीर्थ, धनुषकोडि आदि  हैं ।   

 

कैसे पहुँचें :-     

रामेश्वरम से सबसे नजदीक का हवाईअड्डा मदुरई  में है जिसकी दूरी करीब 177 किलोमीटर है । मदुरई से बस अथवा अपने निजी वाहन द्वारा रामेश्वरम पहुंचा जा सकता है ।

रेल मार्ग द्वारा भी यहाँ बड़ी सुगमता से पहुंचा जा सकता है यहाँ का रामेश्वरम स्टेशन देश के करीब सभी बड़े रेल्वे स्टेशनों से  सीधा जुड़ा हुआ है ।  

सड़क मार्ग द्वारा भी यहाँ पहुंचा जा सकता है तमिलनाडू राज्य निगम की बसों द्वारा तमिलनाडू के विभिन्न शहरों से यहाँ के लिए बसें उपलब्ध रहती हैं ।

 

 संतोष चौबे       

                                              

Comments

  1. प्रिय संतोष जी,
    आप के द्वारा इस तीर्थ स्थल का इतना विस्तृत एवं मनमोहक वर्णन करने हेतु आपको कोटी कोटी धन्यवाद ।
    आपके इस लेख द्वारा रामेश्वरम धाम के इतिहास, भौगोलिक स्थिति व सनातन धर्म मे इसकी मान्यताओं के सम्बन्ध मे बहुत जानने व समझने को मिला ,एक क्षण के लिए तो यह प्रतित हुआ की मै रामेश्वर धाम पहुँच ही गई हूँ। इस सुन्दर लेख हेतु एक बार पुनः आपका ह्रदय से आभार 🙏

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    1. आपका बहुत आभार।

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  2. ज्ञानवर्धक एवं महत्वपूर्ण जानकारी। धन्यवाद।

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